हे सतनाम हे सतपुरुष

सतनाम रावटी

परम पुज्य राजागुरु बालकदास बाबा जी का निवास भंडारपुरी धाम , वंहा से गुरु बाबा जी सैकड़ो संतो के साथ हाथी घोडा की सवारी कर २० - २५ गाँव के बीच में अपना पड़ाव डालते, वंहा से गुरु सिपाहियों के माध्यम से सुचना पत्र भिजवाकर समय-तिथि निधारित करते फिर उसी निधारित तिथि समय में गुरु बालकदास बाबा पुरे दल-बल के साथ गाँव में पहुचते, ग्रामवासी गाँव के मेंढो से स्वागत करके लाते बुजुर्ग सियान मंगल पंथी गाते , युआ साथी अखाडा शौर्य प्रदर्शन करतेबी , माता स्त्रयां हाथ में आरती थाली सजाकर गुरु का बाजा-गाजा के साथ परघाते हुए गाँव के चौपाल तक लाते गुर का चरण मानते चरण अमृत लेते बाबा की आरती करते फिर सभी उसी स्थान पर शांति से बैठकर गुरु बाबा जी के सन्देश को सुनते |

राजागुरु बालकदास बाबा जी ने समाज में तीन बातो पर विशेष ध्यान दिया :

1. खानी

"जैसे खाबो अन्न, वैसे रइही मन"

2. बानी

"जैसे पिबो पानी, वैसे रइही बानी"

खानी

जैसे खाबो अन्न, वैसे रइही मन।

अर्थात् :- मनुष्य के जीवन में मुँह (मुख) का बड़ा ही महत्व होता है, मुँह का उपयोग हम भोजन ग्रहण करने एवं अपने भावनाओं को मुँह के माध्यम से व्यक्त करते है, सत्गुरू के अनुसार जो मनुष्य जैसा भोजन ग्रहण करता है, वैसा ही उनका मन भी हो जाता है गर कोई व्यक्ति मांशाहार करता है अथवा अधिक ताम्सिक युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करता है तब उस व्यक्ति का मन भी अपनी स्थिरता खो देता है, मन में स्थिरता नहीं होने के कारण, मन में अनेक गलत विचार उत्पन्न होते है, मन में काम-वासना जागृत होती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य ना चाहते हुए भी गलत विचारों के कारण गलत कार्य कर बैठता है और उसे अपमानित होना पड़ता है, मनुष्य की प्रवृति साकाहार भोजन प्राप्त करने की होती है, परंतु आज के समय में मनुष्य अपने प्रकृति के विपरित जा कर भोजन ग्रहण करने लगा है, जिसका नतीजा यह हो रहा है कि मनुष्य का शरीर अनेक बीमारीयों का खान बनता जा रहा है और उसे जीवन भर दुःखों एवं कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिये हमे सदा सात्विक, साकाहार एवं पवित्र भोजन ग्रहण करना चाहिए जिससे हमारे मनों स्थिति भी स्थिर रहेगी, मन में अच्छे विचार उत्पन्न होंगें, अच्छे विचारों से अच्छा कार्य होगा, जिससे समाज में आप सर्वोच्च स्थान को प्राप्त करेंगें।

बानी

जैसे पिबो पानी, वैसे रइही बानी

अर्थात्-मनुष्य जिस तरह का पानी ग्रहण करता है-वैसा ही उसका वाणी होता है। इस पंक्ति में पानी का तात्पर्य नशा से है, नशा :- (शराब, गांजा, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाखू आदि) उदाहरण :- कोई व्यक्ति शराब ग्रहण करने वाला है तो आप सभी ने यह महसूस किया होगा कि शराब पीने के बाद वह मदमस्त हो जाता है, अपना होस-हवास खो बैठता है और उसके जुबान से ऐसे-ऐसे शब्द सुनने मिलते है, जिसे कोई सुनना न चाहेगा, यहां तक की लोगों को शर्मीन्दगी भी होने लगती है। जो व्यक्ति गलत वाणी बोलता है, किसी का अपमान करता है व्यवहारिक नही होता ऐसे लोगो के साथ कोई बात - चीत, उठना-बैठना, रिस्ते-नाते बनाना उचित नही समझते लेकिन इसके विपरित जो व्यक्ति व्यवहारिक होता है, सभी का सम्मान करता है, मीठे-मधुरवाणी का उपयोग करता है, ऐसे लोगों के साथ सभी अपना समाजिक जीवन व्यतीत करना पसंद करते है, इसलिए गुरू का कहना है कि नशापान करने मात्र से आपके समाजिक जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, आपके अपने रिस्ते - नाते, बाल-बच्चे सभी से अलग होना पड़ता है तो ऐसा नशा करने से क्या लाभ जो आपको अपनों से दूर करता है, इसलिए अपने जीवन में नशापान का पूर्णतः त्याग करें, जिससे समाज में भी आपका अलग स्थान होगा, अपनों में भी प्रेम स‌द्भावना, भाईचारा होगा। अतः समाज से अपिल है कि अपने जीवन में अपने मुँह का सदुपयोग करें, किसी भी तरह का जीव हिंसा, मांश भक्षण एवं नशापान से दूर रहें, जिससे आपके परिवार में भी आर्थिक क्षति नहीं होगी, बल्कि आर्थिक स्थिति उन्नति की ओर बढ़ेगी। अपने परिवार बाल-बच्चों को उचित शिक्षा, सुख-सुविधाएं उपलब्ध करा पाएंगे और जब एक व्यक्ति, एक परिवार उन्नति करेगा तभी समाज भी विकास की गति को प्राप्त करेगा | जब तक समाज स्वच्छ एवं सभ्य नही बनेगा , तब तक समाज का किसी भी क्षेत्र में विकास होना असंभव सा है ।

सियानी

जब समाज में खानी-बानी में सुधार हुआ तब समाज में सामाजिक एकता स्थापित हुआ, जब समाज में एकता आ गई, समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, सदभावना जागृत हुई। फिर बाबा ने सियानी का अर्थ बतलाया-सियान यानी मुखिया, लीडर किसी भी कार्य को सफल बनाने के लिए सियान की आवश्यकता होती है, जैसे की राजा होता है, राजा के नेतृत्व में राज्य का संचालन होता है। उसी तरह मान लो एक घर है, एक पिता, दो बेटे हैं पिता के नेतृत्व में घर चलता है तो दोनों बेटे पिता के नेतृत्व में चलते हैं लेकिन जब पिता नहीं रहते तो दोनों बेटे नेतृत्व करना प्रारंभ कर देते है, दोनों में सामंजस्य नही बन पाता और अंततः घर का बटवारा हो जाता है, दोनों भाई अलग हो जाते हैं। उसी तरह गुरू बालकदास बाबा ने एक गाँव में रहने वाले संतो को परिवार माना फिर एक परिवार बनके रहने की शिक्षा दिये और इस परिवार को संचालित करने के लिए गाँव-गाँव में धार्मिक, समाजिक पदाधिकारी भण्डारी-सांटीदार की नियुक्ति किए।


भण्डारी-सांटीदार के नियुक्ति के पश्चात् बाबा ने दोनों को पूर्ण धार्मिक, रीति-रिवाजों, खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक कानून व्यवस्था का प्रशिक्षण प्रदान करते, फिर भण्डारी सांटीदार के माध्यम से गाँव-गाँव में नीति-नियम लागू करवाये पूरे समाज का संचालन हेतु गुरू का संदेश प्रत्येक गाँव-गाँव तक, प्रत्येक ब्यक्ति तक पहुँचे इसलिये गुरू, राजमहंत, महंत, जिला महंत, ब्लाक महंत, सेक्टर महत 25 गंवा समिति, अठ गंवा समिति, गाँव-गाँव में भण्डारी-साटीदार की नियुक्ति किये। जिससे समाज का संचालन उचित ढंग से होने लगा साथ ही समाज के युवा साथियों को संगठित कर सतनाम सेना का गठन किये और धर्म की रक्षा, समाज की रक्षा हेतु गुरू बालकदास जी युवाओं को अखाड़ा प्रशिक्षण, युद्ध कौशल, आत्म रक्षा के गुण सिखाये।


इस तरह गुरू बालकदास बाबा जी का सतनाम आंदोलन क्रांति का रूप धारण कर चुका था। सतनाम रावटी गाँव-गाँव मे पहुँचा, बाबा का संदेश प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचा, समाज के बुजुर्ग-सियान, माता, स्त्री, युवाजन गुरू बालकदास बाबा जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़े साथ में सतनामी समाज ही नहीं गैर सतनामी जिनके ऊपर अन्याय अत्याचार होता था। वे सब भी गुरु के आंदोलन में शामिल हुए इस तरह पूरे छ.ग. में अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिये पूरा समाज आंदोलित हो उठा, समाज गुरु बालकदास बाबा जी को नये नाम से पुकारने लगे जागृत्ति के आँधी, समाज उन्हें अपना मसीहा मानने लगा बाबा का यह आंदोलन इतना तेज गति से चला कि गुरू बालकदास बाबा के नेतृत्व के सामने समस्त राजाओं को भी झुकना पड़ा, यहां तक के अंग्रेजों को भी गुरू बालकदास बाबा के समक्ष घुटने टेकने पड़े और रायपुर में समस्त राजाओं एवं अंग्रेजों के समक्ष राजा की उपाधि से सम्मानित किया गया, उन्हें राज मुकुट (पगड़ी), शाही तलवार, राजशी वेश, अंग रक्षक रखने का अधिकार एवं हाथी भेंट किया गया। उस दिन से बाबा जी सतनामी समाज के राजा बनकर समाज का नेतृत्व किये और समाज के विकास की गति तेज हो गई। समाज आर्थिक विकास की ओर बढ़ा तो सतनामी समाज के सियान हजारों एकड़ जमीन के मालिक बनें, मालगुजार, गौटिया बनें, समाज के लिए शिक्षा का भी द्वार खोला, शिक्षा का अधिकार पहले गुरूजी के द्वारा ही मिला फिर और भी महात्माओं, महपुरूषों के द्वारा शिक्षा को और आगे बढ़ाया गया, पहले-पहल गुरूजी के द्वारा किया गया, इस तरह समाज सर्वांगीण विकास की ओर आगे बढ़ा, गुरू बालकदास बाबा जी के नेतृत्व में समाज में एकता, प्रेम, भाईचारा, स‌द्भावना, अमन-चैन, सुख शांति स्थापित हुआ समाज आगे बढ़ता रहा।


हे मेरे समाज के संतो बुद्धजीवियों, अधिकारी-कर्मचारियों, नौ जवान साथियों-क्या? हम गुरु घासीदास बाबा, गुरू अमरदास बाबा, गुरु बालकदास बाबा जी से ज्यादा ज्ञानी हो सकते हैं... निश्चित तौर पे नहीं।


इसलिये संतो गुरू के द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करें उसे समझें तभी हम समाज को संगठित कर सकेंगे अन्यथा यह कार्य अधूरा ही रह जायेगा।


गुरु घासीदास बाबा जी के अनुसार समाज के सर्वांगीण विकास के लिए धर्मनीति एवं राजनीति दोनों की आवश्यकता होती है। जब तक समाज में धर्म स्थापित नहीं होगा, नैतिकता नहीं आयेगी और समाज अपनी पहचान खो बैठेगा। धर्म नहीं होगा, तब तक राज नहीं होगा और राज नहीं होगा, तब तक धर्म भी विकसित नहीं हो सकता, दोनों समाज रूपी-गाड़ी के दो पहिऐ हैं। समाज को आगे बढ़ना है, तो धर्मनीति एवं राजनीति दोनों को साथ लेकर चलना होगा तभी समाज आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, शैक्षणिक विकास, सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर हो पायेगा।