बलिदानी राजा गुरु बालक दास जी की जीवनी

राजा गुरू बालक दास जी गुरू घासीदास जी और माता सफुरा के द्वितीय सुपुत्र है। जिसका जन्म भादो कृष्ण पक्ष अष्टमी 1795 को गिरौदपुरी में हुआ था। इनके एक बहन सहोद्रा और तीन भाई अमरदास, आगरदास, अड़गढ़िया दास थे।बालकदासबाबा जी के पत्नी का नाम नीरा माता था | गुरु बाबा जी का ससुराल - नवलपुर ढारा था गुरु बाबा बालक दास जी के एक पुत्र साहेबदास बाबा जी और दो पुत्री गंगा और गलारा माता थे | गुरु बाबा जी का मुख्य अंगरक्षक- जुड़वां भाई सरहा और जोधाई थे गुरु बाबा जी का मुख्य सवारी हाथी और घोडा था , हाथी का नाम - दुलरवा और घोड़ा का नाम - सांवल मणि था गुरु बाबा जी के परम मित्र राजा वीर नारायण सिंह थे । दोनों राजा थे दोनों मिलकर जनकल्याण कारी कार्य करते थे। राजा गुरु बालक दास बाबा जी को अंग्रेजो द्वारा राजा की उपाधि - सन 1820 में दिया गया । वे मुख्य रूप से कंठी और सोने के ताग का सततागी जनेऊ धारण करते थे । (अभी भी सतनामी समाज में शादी में दुल्हेराजा का जनेऊ फोरने का रिवाज है जिसमें महिलाओं से गीत गाते सुन सकते हैं कि हमरो गोसाईं बाबा के दुई झन बेटवा पहिरे हे सोन के जनेऊ ) राजसी ठाठ बाट में रहते थे हाथी घोड़ा में सवार करते थे। और स्वर्णजड़ित मूठ के तलवार धारण करते थे ।
गुरु बाबा बालक दास जी के द्वारा किये जनकल्याण कार्य
- समाज को सशक्त, संगठित करने के लिए भण्डारी, साटीदार, महंत, राजमहंत,अठगंवा ब्यवस्था दिए।
- सेना - सतनाम सेना आत्मरक्षा के लिए अखाड़ा प्रथा समाज मे शुरू करवाये। सशक्त शस्त्र धारी सतनाम सेना बनाएं जिससे मराठा शोषण कारियों और लुटेरा पिंडारियों से आम जनता को बचाए ।
- सतनाम के प्रचार के लिए गाँव-गांव जाकर रावटी लगाकर सतनाम का अलख जगाये जिससे कई जाति के लोग सतनामी बने।
- गुरूद्वारा - पिता जी के मार्गदर्शन में मोती महल भंडार पुरी में निर्माण कराए जिसमें सोने के कलश चढ़ाएं । मोती महल के कंगुरा में पिता जी के मार्गदर्शन में सतनाम के उपदेश को प्रचारित करने तीन बंदरों का दृश्यांकन कराए। जिसमें मुंह बंद किए बंदर से असत्य न बोलो, कान बंद किए बंदर से असत्य न सुनों, आंख बंद किए बंदर से असत्य न देखो और बीच आंगना में चांद- सुरूज नाम से जोड़ा जैतखाम गड़ाए ।
- संचालन केंद्र - सतनाम आंदोलन के लिए संचालन का केन्द्र कुआँ बोड़सरा बाड़ा, तेलासीपुरी बाड़ा, गोसाईं बाड़ा गुढ़ियारी को बनाकर सतनाम का प्रचार-प्रसार किये।
- गठन- सतनाम सेना का गठन कर समाज को सशक्त और संगठित किए।
- अठगंवा - सतनामी संगठन को मजबूती प्रदान करने गुरू राजमहंत, महंत, अठगंवा और हर गांव में भंडारी, छड़ीदार बनाए जो सामाजिक समस्याओं का निराकरण करते थे, और हल नहीं होने पर गुरू न्यायालय भंडारपुरी भेजते थे जो सतनामी समाज का सुप्रीम कोर्ट था जिसका निर्णय गुरू सुनाता था जो सर्वोपरी होता था ।
- गुरू न्यायालय में व्यक्तिगत निर्णय के साथ-साथ कुछ पारा, मुहल्ला, गांव व कुछ क्षेत्र के लिए भी निर्णय सुनाते थे । जो सतनाम मार्ग में चल नहीं पाते उस व्यक्ति विशेष को संत समाज का पांव पराना, एक नारियल या कुछ रूपए का व पंगत कराने का भी दंडित करते थे। पुनरावृति पर बहिष्कार भी करते थे। कुछ गांव या क्षेत्र् के लोग सतनाम मार्ग व संस्कृति पर नहीं चलने पर पूरे क्षेत्र को गोबर छिड़क कर छोड़ देते थे। ऐसे थे गुरू वह संत महंत जो सतनाम मार्ग में चलने सत अहिंसा के साथ शुद्धता सात्विकता के परम पराकाष्ठा को मनवाने प्रेरित करते थे ।
स्वतंत्रता आंदोलन
लार्ड डलहौली के हड़प नीति का भारत में सैनिक विद्रोह शुरु हुआ । छत्तीसगढ़ में राजा वीरनारायण सिंह और राजा गुरू बालकदास जी के संयुक्त विद्रोह से अंग्रेजी शासन कांप गया । और बीरनारायण सिंह को लूटपाट चोरी अपहरण देशद्रोह का केश लगाकर जयस्तंभ चौक रायपुर में तोप से उड़ा कर जन मानस में दहशत पैदा किया
राजा गुरू बालकदास पर सीधे कार्यवाही न कर छल कपट का सहारा लिया क्योंकि वह अति लोकप्रिय जननायक थे सतनामी विद्रोह से बचने अन्य प्रांत के अपराधियों का सहारा लिया। जमींदारी का लालच देकर छल कपट में सहयोग किया व हत्या के बाद फरारी कोर्ट कचहरी का हवाला देकर स्थिति नियंत्रित कर लिया ।
अंग्रेज शासन और मराठा गठजोड़ कर गोड़मारू सेना बनाया जिससे गोड़ राजा और जमीदारों की हत्या करते गया । साथ ही सतनामी जमीदारों को भी मारने काटने, जमीन हड़पने व बेदखल करने लगा। सतनामी अपनी एकता शूरता वीरता के दम पर 365 गांव के जमीदारी में से 111 गांव के जमींदारी को बरकरार रख पाया।
राजा गुरू बालक दास जी सतनाम के महान प्रचारक थे
राजा गुरू बालक दास जी सतनाम के महान प्रचारक, अन्याय अत्याचार के विरोधी,जनप्रिय, शूरवीर, योद्धा थे। जो मराठा के शोषण और दमनकारी नीतियों के विरूद्ध खड़ा होते थे। पिंडारी दल के लूटपाट से आप जनता को बचाते थे। अंग्रेज जब भारत के राजाओं को खत्म कर रहे थे, तो उसी समय वही अंग्रेज गुरू बालक दास जी के जनकल्याण कारी कार्य को देख कर घोड़ा हाथी की सवारी, सोना जड़ित मूठ वाला तलवार भेंटकर, राजा के पदवी से नवाजे । जिसके खुशी में क्वांर शुक्लपक्ष एकादश को भंडारपुरी में एक भव्यतम विशाल कार्यक्रम आयोजित कराया। परम पूज्य गुरू घासीदास बाबा जी इसी दिन सतनाम के प्रचारक और सत अहिंसा पालन पराकाष्ठा के प्रतीक कंठी व सततागी धारण कराकर गुरू की पदवी सौंप कर गुरूदर्शन, और सतनाम प्रचारार्थ के लिए आदेशित किए उसी की याद में भंडार पुरी में प्रतिवर्ष क्वांर शुक्लपक्ष एकादश को गुरूवंश आज भी गुरूदर्शन मेला परंपरा को बनाए रखें हुए हैं । गुरूवंश हाथी -घोड़ा में सवार होकर राजसी ठाठ -बाट में अखाड़ा व तलवार के साथ निकलते हैं ।
गुरू घासीदास जी अपने जीते जीयत अपने पुत्र राजा गुरू बालक दास जी के जन्म दिवस को सतनाम मार्ग स्वीकारें लोगों के घरोघर में सतनाम के प्रतीक जैतखाम व निशाना स्थापित करा कर उसमें पालो चढ़ाने का एक सांस्कृतिक आयोजन कर भव्यतम रुप दिया है अतः गुरू बालक दास जयंती भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाना चाहिए । और उनके शूरता, वीरता, त्याग, बलिदान को याद करने 28 मार्च को विराट रूप में शहादत दिवस मनाना चाहिए ।
गुरु बालकदास जी का सपना
शिक्षित, संगठित और संस्कारित समाज हो अपना
आओ हमारी सतनामी संस्कृति,संस्कार को उच्च बनाएं ...
सतनाम मय हो दुनिया ऐसे पहचान बनाएं ..
गुरु बाबा जी का शहादत 28 मार्च 1860 को औराबांधा में हुआ उनके अंतिम शब्द - गुरू अगरदास जी और साहेब दास जी को देखकर भासरी आवाज में बोले कि .. " ये सतनाम के प्रचार चारो खुट करहू "।