ब्रह्मचारी गुरु गुरु अमर बाबा जी की जीवनी

सतनाम के दूसर पुरोधा गुरू अमरदास जी हर ये। ये गुरू घासी दास अउ सफुरा के पहिलांवत बेटा ये। आसाढ़ चौदस पुन्नी के दिन 1794 म अवतरण होय हे। ये बालपन म साधु संन्यासी मन के यात्रा जत्था म संगे संग चले गे। बाप महतारी घर परिवार के मन सब अब्बड़ खोजिस ढूंढिस। ढूंढते रहिसे, फेर नइ मिलिस ते नइच मिलिस। थोरके दिन बात घासीदास घलो कहां निकलगे। बेटा दुख संग म, जोड़ी जांवर के बिछोह सफुरा ल व्यथित कर दिस।रात दिन रोवय- लिलियावय, गुनय-धुनय। मन ल सईहारे बर ध्यान साधना करे लगिस अउ एक दिन गहिर साधना म चले गे। गुरू घासी दास ल सतज्ञान अर्जित हो इस त छ: महिना के गे ला, घर लहुटिस अउ सफुरा ल जागृत करिस। गुरू घासीदास जी सतनाम ज्ञान के प्रचार करत रायपुर के तेलासी भंडार म आके रहे लगिस। अमरदास के ज्ञान गुण ल देख के ओकर संग के साधु मन वैराग्य ले के पहिली बाप महतारी ले आदेश ले बर भेजिस, संग म दूं चार साधु घलो आइस। तेलासी पुरी म एक तेली के बच्चा बनेच बीमार रहिसे। बने कर दिस ते, इहां कीर्तवान बनगे। त उहें गुरू अमरदास जी ह अपन ब्रह्मचारी सतधारी जीवन निर्वाहन करत रहिस। सत संस्कृति म वैराग नहीं स्वराज के परंपरा हे। परिवार मन कहिस त प्रतापपुरहीन ले बिहाव तो कर लिस फेर गृहस्थ म योगमय संग संगनी सहिन रहिस। ये श्वेतमणि घोड़ा म सवारी करय। समाज ल ध्यान-ज्ञान, योग-साधना, पंथी, मंगल- भजन चौंका-आरती, अउ रीति-नीति, सत संस्कृति ले संस्कारित करिस। खानी, बानी, रहनी, गहनी ल शुद्धता सात्विकता के परम पराकाष्ठा म पहुंचा के, दया-मया ले रहे अउ जीए-खाए के मारग बताइस। अउ जन-जन म सतनाम ज्ञान लखाय । नाम-पान सिखाय, चंदन के, कंठी माला सततागी धारण कराय, जे उच्च ज्ञानवान, गुणवान हो जाय ओला गांव -गांव म भंडारी साटीदार बनाय। सतनाम मय करे के दिशा म अच्छा काम करे लग जाय, तेला महंत, जिला महंत, तहसील महंत, अउ राज महंत पदवी दे के समाज के भार सौंपय। गुरू अमर दास योगी तपस्वी रहिस, जगह-जगह रावटी लगाय। पंथी- मंगल चौंका-भजन गावय। नाम- पान, कंठी-माला, सततागी धारण करावय। खुश रहव, आनंद मंगल रहव, सद्गुरू ज्ञान पाव, देश दुनिया म नाम कमाव कहिके आशिष मुड़ म हथेरी मढ़ाके देवय, शब्दनाम जलामृत के चमत्कारिक शक्ति ले दुखी-दंडी मन के दुख-संताप के निवारण करय। सुख शांतिमय जीवन जीए के रास्ता बताय ते, हजारों-हज़ारों मनखे अपन जाति-पाति, धर्म-कर्म, वर्ण, संस्कृति -संस्कार ल तिलांजलि देके सत संस्कृति ल अंगीकार करय अउ सतनामी बनय। जेकर ले हिंदू समाज म खलबली मांचगे। सामंत वादी मन के कान ठढ़ियागे। गुरू अमरदास जी हर पुन्नी बर रावटी म निकलय। श्वेतमणि घोड़ा म सवार हो के, महंत राजमहंत के जत्था ले के चलय। भंडारपुरी ले निकल के कतनों गांव म रावटी लगावत बाराडेरा के भांठा म पहुंचिस। तीरतार बारा गांव के मन मिलके उही भांठा म रावटी लगाय के व्यवस्था करिस। ज्ञान-बात रोज सुने बर आय उहें सब भोजन भंडारा चलाय। उही मेर के तरिया बिगड़ गे रहिस, संक्रमित हो गे रहिस। गुरू अमरदास ल गांव के निवासी मन जानबा दिस, अवगत कराइस । बाबाजी सतनाम मंत्र ले शुद्ध कर दिस। जहां ले रावटी उठ के नरदहा दोंदे होवत जोगी कुंआ गिस। आगे बढ़ते गिस, सासाहोली होवत किरीतपुर ओकर बाद चटुवागांव गिस। उहां के रावटी म पुन्नी के संजोग बनिस। निर्विकल्प शयन समाधि अउंठ दिन के रखिस। इही बेरा सामंत वादी मन षडयंत्र रचिस। अंग्रेज ल पाठ पढ़ा के एफ आई आर दर्ज करा दिस। अंग्रेज अधिकारी मन सशस्त्र दल-बल सैनिक ले के आगे। हवा म फायर करिस अउ जो जहां हैं, जैसे हैं, वहीं रहें कहिके हवा म एक अउ फायर करिस। अउ ओकर पांच सेवादार मन ल मालगुजार के बाड़ा म नजरबंध कर दिस। योगरत गुरू अमरदास जी के संसा ल जांचे बर गांव के पटइल ल कहिस। हाथ के नारी ल, छाती ल छू टमड़ के देखिस । अउ कहि दिस, नइ चलत ये संसा, उड़गे हे एकर हंसा। पुस पुन्नी के दिन 1824 म पुलिस शिवनाथ नदी के पार म दफनवा दिस। कुटिल हिंदू सामंत वादी मन के चाल चलगे। सतनाम मार्ग म चलत गुरू अमर दास जी अमर शहीद होगे। शिवनाथ नदी पार म ये चटवा अउ किरीतपुर के बीच म पुस पुन्नी म विशाल मेला लगथे जिहां गुरू अमरदास जी के समाधि म माथा टेक के जनमानस अपन दुख दरद ल निर्वृति बर पूजा वंदना करथे। अइसे ध्यानी-ज्ञानी, योगी-ब्रम्हचारी अउ सतधारी गुरू ल, सादर नमन, नीर नयन ले अश्रु पूरित श्रद्धांजलि.......